रावण जला,सब खुश हुए। बुराइयाँ भी जल गई। हर साल बुराइयों को जलता देखने के लिए भीड़ इकट्ठी होती है।तालियाँ बजती है। त्यौहारों का माहौल बन जाता है। पुतला जलाने की प्रथा कई सौ सालों से चली आ रही है। हम सबके मन में ठूँस ठूँस कर भरा गया है कि बुराई बुरी होती है बुराई का नाश होना चाहिए और सिर्फ़ अच्छाई रहनी चाहिए। सभी को अच्छाई पसंद है। अपने बारे में अच्छा अच्छा कौन नहीं सुनना चाहता ?
फिर दुनिया में इतनी बुराई क्यों है ?
एक से बढ़ कर एक नेता कोई घोटाले करता है,ऊँचे से ऊँचे पद पर बैठा सरकारी बाबू बिना घूस लिए फाइल पर साइन नहीं करता,दो दो साल की बच्चियों के साथ कोई दरिंदा दुष्कर्म करता है,ख़ुद को नेक समझने वाला आम आदमी मौक़ा मिलते ही ऑफिस की स्टेशनरी से अपने बच्चों के स्कूल assignment पूरा करता मिलेगा, नक़ली खोया बनाने वाले दाल में का कंकड़ मिलाने वाले कहाँ से आते है ? कोई अच्छा नहीं है लेकिन सब अपने लिए अच्छाई चाहते हैं। मिर्जा गालिब के शब्दों में जिन्हें नहीं पता कि वफा क्या है, वो वफा चाहते हैं।कमाल है। कमाल है। कमाल है।
अब कैलिरीज़ की बात कर लेते हैं।मैं गुड़गाँव में रहता हूँ जो एक छोटा सा टापू है और चारों तरफ़ से ठेकों से गिरा है। नौ दिन बाद ठेकों के बाहर श्रद्धालुगण लाइन लगा कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। वहाँ किसी को पार्किंग नहीं मिल रही थी तो किसी को चखना।फ़ूड कोर्ट में अफ़रा तफ़री का मौहल था। छोले भटूरे वाले से दो लोग अपने नंबर को लेकर लड़ाई करने लगे।
दशहेरा मेलें में तो और ग़ज़ब हुआ।किसी की बाइक चोरी हो गई तो कई लोगों के जेब काट ली गई। भीड़ वाली जगह पर माइक से एनाउंस हो रहा था- किसी का मोबाइल निकल गया है। अपना मोबाइल संभालिए। एक ही जगह से चार फोन चोरी हो चुके हैं। मैं सोच रहा था जो आदमी रावण को जलता देखने आया,जिसकी बाइक चोरी हो गई थी अब घर कैसे जाएगा ? क्या वो अगली बार रावण देखने आएगा ? बुराई हार रही थी। अच्छाई जीत रही थी।रावण मर रहा था,मर कर पता नहीं कहां जा रहा था।
जो सब में रह गया था वो सिर्फ़ अच्छाई थी जो चारों और फैली हुई थी।सभी में कूट कूट कर भरी थी,मुझे तो लगता है ज़्यादा बारीक कूटी गई इसलिए बस दिखाई नहीं देती है।
बोले जय श्री राम 🙏🏻