Author: thesehatsingh

  • पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌸

    मैं जानता हूँ कि पुरुष दिवस को महिला दिवस जैसी पहचान और सम्मान नहीं मिलता, लेकिन फिर भी, मैं आपको दिल से Happy Men’s Day कहना चाहता हूँ। सोशल मीडिया के इस युग में जहाँ हर किसी को 8 मार्च के महिला दिवस का पता होता है, वहीं 19 नवंबर, यानी International Men’s Day, के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

    आप शायद—
    • एक पिता का किरदार निभा रहे होंगे,
    • एक भाई का,
    • एक बेटे का,
    • एक पति का या एक दोस्त का।
    और हर भूमिका में अपनी पूरी क्षमताओं के साथ हमेशा बेस्ट देते होंगे।

    “ज़िम्मेदारियों को समझने से लेकर उन्हें निभाने तक,अपने लिए सपने देखने से लेकर उन्हें पूरा करने तक,अपने लिए कमाने से लेकर अपनों के लिए कामने तक”—इस पूरी यात्रा को तय करना ही आपको एक ‘पुरुष’ बनाता है।

    “मर्द” होने का मतलब कठोर होना नहीं है।“लड़के रोते नहीं” या “मर्द को दर्द नहीं होता”—ये बातें केवल रूढ़िवादी धारणाएँ हैं। प्यार या दुःख में आपकी आँखों से आँसू निकलते हैं, तो यह आपकी अंदरूनी अच्छाई और संवेदनशीलता का प्रतीक है।संवेदनशील होना कमजोरी नहीं, बल्कि आपकी ताकत है।भावनाओं का होना ही इंसान को इंसान बनाता है।

    कोई भी Perfect Man नहीं होता। लेकिन हर किसी में बेहतर बनने की संभावना होती है।आपकी भाषा में शालीनता और आपके व्यक्तित्व में आत्मविश्वास होना चाहिए।काम और परिवार के बीच संतुलन बनाएँ।ऑफिस की टेंशन, ट्रैफिक जाम की खीझ, या दुनिया की समस्याओं का बोझ घर न लेकर जाएँ।आप अच्छे हैं, और आप और बेहतर बन सकते हैं।

    खुद को अपग्रेड करना मत भूलिए
    • हमेशा कुछ नया सीखें।
    • किसी न किसी खेल (sports) का हिस्सा बनें।
    • अपनी सेहत का ध्यान रखें।

    अब बात को थोड़ा और गहराई में ले चलते हैं।

    मैं दूसरों के मन की बात नहीं जानता, लेकिन अपने दिल की बात जरूर कहना चाहता हूँ।अब तक मैंने कई कविताएँ पढ़ी हैं, जो इंसानी सुंदरता का बखान करती हैं। पर जब भी सुंदरता की बात होती है, पहला ख़्याल हमेशा स्त्री की सुंदरता का ही आता है।
    शायद इसलिए क्योंकि ज़्यादातर कविताएँ स्त्री की सुंदरता पर ही लिखी गई हैं।

    अक्सर कवि और शायर लिखते हैं:
    • उसकी कमर नदी के मुड़ाव सी है,
    • उसकी चाल मोरनी जैसी है,
    • उसकी जुल्फें पर्दे की तरह हैं, जिनके पीछे चाँद छुप जाता है।
    • उसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से मिलते हैं,
    • और उसकी आँखों में शराब से ज्यादा नशा है।

    लेकिन बहुत ही कम कविताएँ पुरुष की सुंदरता पर लिखी गई हैं।
    किसी ने यह नहीं कहा—
    “तुम्हारी भुजाएँ चट्टानों जैसी हैं।”
    या“तुम्हारी आँखों में सुकून का समंदर है।”

    और अगर कोई ऐसा लिख भी दे, तो सुनने वाले हँस देंगे। क्योंकि उन्हें ऐसी तारीफ सुनने की आदत नहीं है।

    भविष्य में पुरुषों पर कविताएँ?

    शायद जब लड़कियों को प्यार जताने की पूरी आज़ादी और हिम्मत मिलेगी, तब पुरुषों की सुंदरता पर भी कविताएँ लिखी जाएँगी।हो सकता है कि हमारी पीढ़ी उन कविताओं को पढ़कर हँसे, लेकिन आने वाले समय में इन्हें सराहा जाएगा।
    शायद वे कविताएँ चैट पर फॉरवर्ड भी की जाएँगी।

    खैर, यह सब तो समय ही बताएगा।
    लेकिन मैं जरूर देखना चाहता हूँ कि एक पुरुष की सुंदरता का व्याख्यान कितने तरीकों से किया जा सकता है।

    आपके चेहरे पर मुस्कान लाने के इस प्रयास के साथ विदा लेता हूँ।एक बार फिर, आप सभी को पुरुष दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ।Happy Men’s Day!

  • बुराइयों और Calories हर साल जलाई जाती हैं लेकिन फिर भी हमारे अंदर थोड़ी रह जाती हैं।

    रावण जला,सब खुश हुए। बुराइयाँ भी जल गई। हर साल बुराइयों को जलता देखने के लिए भीड़ इकट्ठी होती है।तालियाँ बजती है। त्यौहारों का माहौल बन जाता है। पुतला जलाने की प्रथा कई सौ सालों से चली आ रही है। हम सबके मन में ठूँस ठूँस कर भरा गया है कि बुराई बुरी होती है बुराई का नाश होना चाहिए और सिर्फ़ अच्छाई रहनी चाहिए। सभी को अच्छाई पसंद है। अपने बारे में अच्छा अच्छा कौन नहीं सुनना चाहता ?

    फिर दुनिया में इतनी बुराई क्यों है ?
    एक से बढ़ कर एक नेता कोई घोटाले करता है,ऊँचे से ऊँचे पद पर बैठा सरकारी बाबू बिना घूस लिए फाइल पर साइन नहीं करता,दो दो साल की बच्चियों के साथ कोई दरिंदा दुष्कर्म करता है,ख़ुद को नेक समझने वाला आम आदमी मौक़ा मिलते ही ऑफिस की स्टेशनरी से अपने बच्चों के स्कूल assignment पूरा करता मिलेगा, नक़ली खोया बनाने वाले दाल में का कंकड़ मिलाने वाले कहाँ से आते है ? कोई अच्छा नहीं है लेकिन सब अपने लिए अच्छाई चाहते हैं। मिर्जा गालिब के शब्दों में जिन्हें नहीं पता कि वफा क्या है, वो वफा चाहते हैं।कमाल है। कमाल है। कमाल है।

    अब कैलिरीज़ की बात कर लेते हैं।मैं गुड़गाँव में रहता हूँ जो एक छोटा सा टापू है और चारों तरफ़ से ठेकों से गिरा है। नौ दिन बाद ठेकों के बाहर श्रद्धालुगण लाइन लगा कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। वहाँ किसी को पार्किंग नहीं मिल रही थी तो किसी को चखना।फ़ूड कोर्ट में अफ़रा तफ़री का मौहल था। छोले भटूरे वाले से दो लोग अपने नंबर को लेकर लड़ाई करने लगे।

    दशहेरा मेलें में तो और ग़ज़ब हुआ।किसी की बाइक चोरी हो गई तो कई लोगों के जेब काट ली गई। भीड़ वाली जगह पर माइक से एनाउंस हो रहा था- किसी का मोबाइल निकल गया है। अपना मोबाइल संभालिए। एक ही जगह से चार फोन चोरी हो चुके हैं। मैं सोच रहा था जो आदमी रावण को जलता देखने आया,जिसकी बाइक चोरी हो गई थी अब घर कैसे जाएगा ? क्या वो अगली बार रावण देखने आएगा ? बुराई हार रही थी। अच्छाई जीत रही थी।रावण मर रहा था,मर कर पता नहीं कहां जा रहा था।

    जो सब में रह गया था वो सिर्फ़ अच्छाई थी जो चारों और फैली हुई थी।सभी में कूट कूट कर भरी थी,मुझे तो लगता है ज़्यादा बारीक कूटी गई इसलिए बस दिखाई नहीं देती है।

    बोले जय श्री राम 🙏🏻

  • सभी अच्छी आदतें एकदम से ना शुरू किया करें।

    अक्सर ऐसा होता है कि जिन लोगों ने अपने जीवन में व्यायाम के नाम पर सिर्फ लिफ्ट खराब होने पर सीढ़ियाँ चढ़ी हैं या नहाने के वक्त पानी का डिब्बा उठाया है, वे अचानक किसी प्रेरणादायक फिल्म, जैसे “दंगल” या “भाग मिल्खा भाग”, देखकर जोश में आ जाते हैं। उसी समय वे ठान लेते हैं कि अब उनके सिलेंडर जैसे अस्त-व्यस्त शरीर को छरहरा, सुडौल और गुरुत्वाकर्षण से मुक्त बनाना है।

    इस जोश में वे सीधे जिम जाकर पूरे साल की मेंबरशिप ले आते हैं। शुरुआत में उनका उत्साह देखने लायक होता है। वे अपने 200 किलो वजनी शरीर को ऐसे मरोड़ते और खींचते हैं जैसे अगले हफ्ते ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले हों। घर की रसोई में भी क्रांति हो जाती है। जहाँ पहले आलू-परांठे और छोले-भटूरे का राज था, अब सिर्फ भूरे चावल और बिना जर्दी वाले अंडों की तानाशाही लागू हो जाती है।

    लेकिन, शरीर इस बदलाव को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करता। जिस पेट ने सालों तक परांठों, समोसों और मिठाइयों का आनंद लिया हो, वह अचानक अंकुरित चने और उबली हुई सब्जियों को देखकर बगावत कर देता है। यह वही शरीर है जो छोले-भटूरे के भरोसे टिका था; अब उसे “सुपरफ़ूड्स” पर चलाना चमत्कार से कम नहीं।

    ऊपर से, वे अपने नाजुक टेडी बियर जैसे शरीर पर 2000cc की कसरत का बोझ डाल देते हैं। परिणामस्वरूप, मांसपेशियाँ कराहने लगती हैं और हर कदम उठाने पर दर्द का एहसास होता है। रातें दर्द निवारक दवाओं और दर्द से भरी नींद में कटती हैं।

    फिर आता है असली मोड़—दो-तीन दिन बाद ही उनका जोश ठंडा पड़ जाता है। थका हुआ शरीर और टूटे हुए सपनों के साथ, वे वापस ठग्गू के लड्डू और गर्मागर्म कचौड़ियों की गोद में लौट जाते हैं।और बस, एक और “फिटनेस क्रांति” यहीं समाप्त हो जाती है।

    सीख: अच्छी आदतें धीरे-धीरे अपनाएं। शरीर को समय दें। न तो अचानक सारी गलत आदतें छोड़ें और न ही खुद पर जरूरत से ज्यादा बोझ डालें। स्लो एंड स्टेडी ही फिटनेस का असली मंत्र है।

  • हौले हौले से दवा लगती है, हौले हौले से दुआ लगती है..

    हौले हौले से दवा लगती है, हौले हौले से दुआ लगती है..

    जब आप एक्सरसाइज़ शुरू करते हैं, तो जादुई नतीजे दिखने लगते हैं।

    ऐसा लगता है जैसे बॉडी बनाना कितना आसान था! एक महीने के अंदर ही आदमी शीशे के सामने खुद को निहारना शुरू कर देता है। लेकिन फिर आती है स्टेज 2—जहाँ ऐसा लगता है कि सब रुक गया है। जैसे आज़ादी के बाद देश वहीं ठहर गया हो। आप रोज़ जिम जा रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है मानो पृथ्वी ने अपनी धुरी पर घूमना ही बंद कर दिया हो।

    मैंने पहले भी समझाया है कि जितने जल्दी नतीजे आते हैं, उतनी ही जल्दी गायब भी हो जाते हैं। धीमी और स्थिर प्रगति ही सबसे बेहतर होती है। शरीर को समय चाहिए अपने आप को ढालने के लिए। आपके शरीर के सेल्स पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हुए हैं; उन्हें एक महीने में चमत्कारी बदलाव से बदल देना न केवल गलत है, बल्कि असंभव भी है।

    जो लोग सालों तक लगातार मेहनत करते हैं, वे इस बात को बखूबी समझते हैं। एक्सरसाइज़ करने से हैप्पी हार्मोन्स रिलीज होते हैं, आपको ऊर्जा मिलती है, आपका आंतरिक सिस्टम बेहतर होने लगता है, नींद और भूख सही हो जाती है, और धीरे-धीरे मसल्स भी बनने लगती हैं। लेकिन, यह सब समय लेता है।

    क्या आप जानते हैं? एक किलो Muscles gain करने में 6-8 हफ्ते तक लग सकते हैं।

    इसलिए अगर आपको तुरंत नतीजे नहीं दिख रहे, तो निराश न हों। वे नंगी आँखों से भले ही न दिखें, लेकिन आपके शरीर में बदलाव ज़रूर हो रहा है। धैर्य रखें, निरंतर मेहनत करें, और अपने सफर का आनंद लें।