Category: Beginner Series

  • सभी अच्छी आदतें एकदम से ना शुरू किया करें।

    अक्सर ऐसा होता है कि जिन लोगों ने अपने जीवन में व्यायाम के नाम पर सिर्फ लिफ्ट खराब होने पर सीढ़ियाँ चढ़ी हैं या नहाने के वक्त पानी का डिब्बा उठाया है, वे अचानक किसी प्रेरणादायक फिल्म, जैसे “दंगल” या “भाग मिल्खा भाग”, देखकर जोश में आ जाते हैं। उसी समय वे ठान लेते हैं कि अब उनके सिलेंडर जैसे अस्त-व्यस्त शरीर को छरहरा, सुडौल और गुरुत्वाकर्षण से मुक्त बनाना है।

    इस जोश में वे सीधे जिम जाकर पूरे साल की मेंबरशिप ले आते हैं। शुरुआत में उनका उत्साह देखने लायक होता है। वे अपने 200 किलो वजनी शरीर को ऐसे मरोड़ते और खींचते हैं जैसे अगले हफ्ते ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले हों। घर की रसोई में भी क्रांति हो जाती है। जहाँ पहले आलू-परांठे और छोले-भटूरे का राज था, अब सिर्फ भूरे चावल और बिना जर्दी वाले अंडों की तानाशाही लागू हो जाती है।

    लेकिन, शरीर इस बदलाव को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करता। जिस पेट ने सालों तक परांठों, समोसों और मिठाइयों का आनंद लिया हो, वह अचानक अंकुरित चने और उबली हुई सब्जियों को देखकर बगावत कर देता है। यह वही शरीर है जो छोले-भटूरे के भरोसे टिका था; अब उसे “सुपरफ़ूड्स” पर चलाना चमत्कार से कम नहीं।

    ऊपर से, वे अपने नाजुक टेडी बियर जैसे शरीर पर 2000cc की कसरत का बोझ डाल देते हैं। परिणामस्वरूप, मांसपेशियाँ कराहने लगती हैं और हर कदम उठाने पर दर्द का एहसास होता है। रातें दर्द निवारक दवाओं और दर्द से भरी नींद में कटती हैं।

    फिर आता है असली मोड़—दो-तीन दिन बाद ही उनका जोश ठंडा पड़ जाता है। थका हुआ शरीर और टूटे हुए सपनों के साथ, वे वापस ठग्गू के लड्डू और गर्मागर्म कचौड़ियों की गोद में लौट जाते हैं।और बस, एक और “फिटनेस क्रांति” यहीं समाप्त हो जाती है।

    सीख: अच्छी आदतें धीरे-धीरे अपनाएं। शरीर को समय दें। न तो अचानक सारी गलत आदतें छोड़ें और न ही खुद पर जरूरत से ज्यादा बोझ डालें। स्लो एंड स्टेडी ही फिटनेस का असली मंत्र है।

  • हौले हौले से दवा लगती है, हौले हौले से दुआ लगती है..

    हौले हौले से दवा लगती है, हौले हौले से दुआ लगती है..

    जब आप एक्सरसाइज़ शुरू करते हैं, तो जादुई नतीजे दिखने लगते हैं।

    ऐसा लगता है जैसे बॉडी बनाना कितना आसान था! एक महीने के अंदर ही आदमी शीशे के सामने खुद को निहारना शुरू कर देता है। लेकिन फिर आती है स्टेज 2—जहाँ ऐसा लगता है कि सब रुक गया है। जैसे आज़ादी के बाद देश वहीं ठहर गया हो। आप रोज़ जिम जा रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है मानो पृथ्वी ने अपनी धुरी पर घूमना ही बंद कर दिया हो।

    मैंने पहले भी समझाया है कि जितने जल्दी नतीजे आते हैं, उतनी ही जल्दी गायब भी हो जाते हैं। धीमी और स्थिर प्रगति ही सबसे बेहतर होती है। शरीर को समय चाहिए अपने आप को ढालने के लिए। आपके शरीर के सेल्स पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हुए हैं; उन्हें एक महीने में चमत्कारी बदलाव से बदल देना न केवल गलत है, बल्कि असंभव भी है।

    जो लोग सालों तक लगातार मेहनत करते हैं, वे इस बात को बखूबी समझते हैं। एक्सरसाइज़ करने से हैप्पी हार्मोन्स रिलीज होते हैं, आपको ऊर्जा मिलती है, आपका आंतरिक सिस्टम बेहतर होने लगता है, नींद और भूख सही हो जाती है, और धीरे-धीरे मसल्स भी बनने लगती हैं। लेकिन, यह सब समय लेता है।

    क्या आप जानते हैं? एक किलो Muscles gain करने में 6-8 हफ्ते तक लग सकते हैं।

    इसलिए अगर आपको तुरंत नतीजे नहीं दिख रहे, तो निराश न हों। वे नंगी आँखों से भले ही न दिखें, लेकिन आपके शरीर में बदलाव ज़रूर हो रहा है। धैर्य रखें, निरंतर मेहनत करें, और अपने सफर का आनंद लें।